बहुत दिनों बाद चिठ्ठे पर आई हूं. क्रांतिकारी कवि पाश की बहुत अच्छी कविता पढ़ी, आपसे बांट रही हूं....
श्रम की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे ठाले पकड़ जाना - बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना - बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ने लग जाना - बुरा तो है
भींच कर जबड़े बस वक़्त काट लेना - बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता
सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना..
- पाश
Sunday, March 29, 2009
Sunday, September 21, 2008
कुछ पंक्तियां
Thursday, June 19, 2008
कहाँ गए पूर्णविराम?
पहले हिन्दी में पूर्णविराम इस्तेमाल होते थे पर अब फुलस्टाप होने लगा है।
हिन्दी में अंग्रेज़ी की सेंधमारी कुछ अच्छी नही लगती।
पर क्या करें ज़माने के चलन पर चलना ही पड़ता है तो लीजिये एक . (फुलस्टाप)
हिन्दी में अंग्रेज़ी की सेंधमारी कुछ अच्छी नही लगती।
पर क्या करें ज़माने के चलन पर चलना ही पड़ता है तो लीजिये एक . (फुलस्टाप)
Wednesday, June 18, 2008
नतमस्तक !
तारीख - १८-०६-२००८
समय -एक बजे दोपहर
जगह-मेरे घर की बाउंड्रीवाल
मैं अपने घर की खिड़की से बहार झांक रही थी की अचानक आंखों ने कुछ ऐसा देखा की मन खुशी और रोमांच से भर गया. बाउंड्रीवाल पर जहाँ चिडियों के पानी पीने के लिए मटकी रखी है ,वहां तीन गोरैय्या बैठी थी बिल्कुल लाइन बनाकर.सबसे पहले एक चिडिया ने चोंच भर पानी पिया ,इधर -उधर देखा और उड़ गई.उसे उड़ता देख के उस की साथिन चिडिया भी उड़ गई .फ़िर धीरे से दूसरी चिडिया मटकी पर बैठी ,पानी पिया और फुर्र्र ............
इस घटना को देखकर बस मन कह उठा -
हे प्रकृति के देवता - नतमस्तक !
समय -एक बजे दोपहर
जगह-मेरे घर की बाउंड्रीवाल
मैं अपने घर की खिड़की से बहार झांक रही थी की अचानक आंखों ने कुछ ऐसा देखा की मन खुशी और रोमांच से भर गया. बाउंड्रीवाल पर जहाँ चिडियों के पानी पीने के लिए मटकी रखी है ,वहां तीन गोरैय्या बैठी थी बिल्कुल लाइन बनाकर.सबसे पहले एक चिडिया ने चोंच भर पानी पिया ,इधर -उधर देखा और उड़ गई.उसे उड़ता देख के उस की साथिन चिडिया भी उड़ गई .फ़िर धीरे से दूसरी चिडिया मटकी पर बैठी ,पानी पिया और फुर्र्र ............
इस घटना को देखकर बस मन कह उठा -
हे प्रकृति के देवता - नतमस्तक !
Saturday, June 14, 2008
भक्ति मे शक्ति है

कहते हैं की अगर किसी चीज़ की शुरुआत ईश्वर के नाम से हो तो वो अच्छी चलती है.तो मैं इसी बात को ध्यान में रखते हुए अपने ब्लॉग की शुरुआत करती हूँ.अक्सर लोग कहते हैं की भक्ति मे बड़ी शक्ति होती है.मैं भी कहती थी पर बिना उसके सत्व को महसूस किए.पर फ़िर अपने घोर निराशा के पलों मे मैंने इसे जिया.मैं अपने career में चल रही परेशानियों के चलते बहुत निराश हो गई थी.मैं ये सोचने लगी थी की this is the end of road और मेरे साथ कभी कुछ अच्छा होने वाला नही है.पर तभी मेरी आस्था शिव मे जगी.फ़िर मै अपने चारो तरफ़ हर वक़्त एक शक्ति महसूस करने लगी. मुझे लगा मैं अपनी परेशानियों मै अकेली नही हूँ ,बाबा (शिव) मेरे साथ हैं.And then I surrendered my problems and even myself to God.उस भीतरी शक्ति ने मुझे जीवित रखा और सब चीजों से उबरने मै मेरी मदद की .अब मेरी जिंदगी का मूलमंत्र है-
जेहि विधि राखे राम तेहि विधि रहिये
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